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Summary of Indigo
Chapter 5 of the Class 12 English Flamingo book is titled “Indigo”. The chapter is written by Louis Fischer and is set in the early 20th century in Champaran, Bihar, during the time of British rule in India.
The chapter tells the story of the indigo farmers who were forced to cultivate indigo by the British planters. The British planters were interested in the production of indigo as it was in high demand in Europe and was a profitable crop for them. However, the cultivation of indigo required a lot of hard work and the farmers were not paid fairly for their labor.
The chapter focuses on the struggle of the indigo farmers who were exploited and oppressed by the British planters. Mahatma Gandhi, who was a lawyer at the time, was approached by the farmers to help them in their fight against the British planters. Gandhi used his legal knowledge and his understanding of Indian culture to unite the farmers and lead a non-violent protest against the British.
Gandhi’s efforts paid off and the British planters were forced to give up their hold on the farmers. This victory was a major milestone in the Indian independence movement and helped to inspire other non-violent protests against British rule in India.
The chapter highlights the plight of the indigo farmers and the exploitation they suffered at the hands of the British planters. It also emphasizes the role of Mahatma Gandhi in the Indian independence movement and his use of non-violent resistance as a powerful tool for social change.
Conclusion of Indigo
To sum up, Indigo’s summary, we learn how Gandhiji did not merely help in freeing India but was always working for the betterment of his countrymen from the very start.
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About the Author
The author of the chapter “Indigo” in the Class 12th English Flamingo textbook is Louis Fischer. He was an American journalist and author who was born in Philadelphia in 1896. Fischer wrote extensively on political and social issues, including communism and the Soviet Union.
Fischer traveled to India in the 1950s and became interested in the country’s struggle for independence from British rule. He wrote several books on Indian history and politics, including “Gandhi: His Life and Message for the World,” which is considered a seminal work on Mahatma Gandhi’s life and philosophy.
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Summary of Indigo in Hindi
दिसम्बर 1916 में गांधी जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वार्षिक सभा में भाग लेने के लिए लखनऊ गए। वहाँ 2,301 प्रतिनिधि थे तथा कई देखने (मिलने) आने वाले लोग । चंपारण के एक किसान, राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी को उसके जिले में आने को कहा। गांधी जी जहाँ कहीं जाते, शुक्ला उनका अनुसरण करता। 1917 में, गांधी जी तथा शुक्ला पटना के लिए रेल में सवार हुए। शुक्ला गांधी जी को राजेन्द्र प्रसाद नामक एक वकील के घर ले गया। वे उससे नहीं मिल पाए क्योंकि वह नगर से बाहर थे।
गांधी जी ने चम्पारण की स्थिति के विषय में पूरी सूचना (जानकारी) प्राप्त करने के लिए पहले मुजफ्फरपुर जाने का निश्चय किया। वह 15 अप्रैल 1917 को आधी रात में रेलगाड़ी से मुजफ्फरपुर पहुँचे। स्टेशन पर प्रोफेसर जे०बी० कृपलानी ने उनका स्वागत किया। गांधी जी वहाँ दो दिन ठहरे। गांधी जी के पहुँचने तथा उनके ध्येय (विशेष कार्य) की प्रकृति के विषय में समाचार मुजफ्फरपुर होता हुआ चम्पारण तक शीघ्रता से फैल गया। चम्पारण के बटाई पर खेती करने वाले किसान वहाँ पहुँचने लगे। मुजफ्फरपुर के वकीलों ने गांधी जी को कचहरी में चल रहे मामलों के विषय में जानकारी दी। उन्होंनेवकीलों को इन बंटाई पर खेती करने वाले किसानों से अधिक फीस बटोरने पर धमकाया। उन्होंने सोचा कि इन कुचले हुए तथा भयग्रस्त किसानों के लिए न्यायालय व्यर्थ थे। उनके लिए असली राहत थी कि वे भय से मुक्त (स्वतन्त्र) हों।
तब गांधी जी चम्पारण में आए। उन्होंने ब्रिटिश भूस्वामियों के संगठन के सचिव से तथ्य एकत्रित करने का प्रयास करते हुए शुभारम्भ किया। सचिव ने बाहरी व्यक्ति को सूचना देने से मना कर दिया। गांधी जी ने कहा कि वह बाहरी व्यक्ति नहीं थे। इसके बाद, गांधी जी तिरहुत प्रमंडल के ब्रिटिश सरकारी आयुक्त से मिलने गये। आयुक्त ने गांधी जी को तंग करना (डराना-धमकाना) आरम्भ किया तथा उन्हें तिरहुत प्रमंडल छोड़ जाने की सलाह दी। क्षेत्र छोड़ने की बजाय, गांधी जी चम्पारण की राजधानी, मोतीहारी गये। उनके साथ कई वकील भी गये। रेलवे स्टेशन पर लोगों की एक विशाल भीड़ ने उनका स्वागत किया। यह उनके ब्रिटिश शासन के भय से मुक्ति का आरम्भ था।
निकट के एक गाँव में एक किसान के साथ दुर्व्यवहार हुआ था। अगले दिन गांधी जी हाथी की पीठ पर सवार होकर चले। शीघ्र ही उन्हें पुलिस अधीक्षक के संदेशवाहक द्वारा रोका गया तथा उसी की घोड़ागाड़ी में नगर लौटने का आदेश दिया गया। गांधी जी ने इस आज्ञा का पालन किया। संदेशवाहक गांधी जी को गाड़ी में घर ले आया। फिर उसने गांधी जी को तुरन्त चम्पारण छोड़कर चले जाने का नोटिस थमा दिया। गांधी जी ने इसकी पावती (रसीद) पर हस्ताक्षर किये तथा इस पर लिख दिया कि वह आदेश की अवज्ञा करेंगे। गांधी जी को अगले दिन न्यायालय में पेश होने का सम्मन (न्यायालय का आदेश) प्राप्त हुआ। रात को गांधी जी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजा, आश्रम में निर्देश भेजे तथा वायसराय को सूचना तार द्वारा प्रेषित की।
हज़ारों किसान न्यायालय के चारों ओर एकत्रित हो गये। कर्मचारी शक्तिहीन महसूस करने लगे। प्रशासक/अधिकारी अपने से श्रेष्ठ लोगों से परामर्श करना चाहते थे। गांधी जी ने देरी का विरोध किया। दण्डाधिकारी ने कहा कि वह दो घंटे के अवकाश के उपरान्त दण्ड (सज़ा) की घोषणा करेगा। उसने गांधी जी से कहा कि वह 120 मिनट के लिये जमानत दे। गांधी जी ने इन्कार कर दिया। न्यायाधीश ने उन्हें बिना जमानत के छोड़ दिया। विराम के पश्चात् न्यायालय पुनः आरम्भ हुआ। न्यायाधीश ने कहा कि वह कई दिनों तक निर्णय (फैसला) नहीं सुनायेगा। उसने गांधी जी को मुक्त (स्वतन्त्र) रहने की आज्ञा दी।
गांधी जी ने प्रमुख वकीलों से बटाई पर खेती करने वाले किसानों के साथ हो रहे अन्याय के विषय में पूछा। उन्होंने आपस में विचार-विमर्श किया। फिर उन्होंने गांधी जी को बताया कि वह उनका अनुसरण कर कारागार (जेल) जाने को तैयार थे। तब गांधी जी ने इस समूह को युग्मों (जोड़ों) में विभाजित कर दिया तथा वह क्रम निश्चित कर दिया जिसमें वे गिरफ्तारी देंगे। कई दिन के पश्चात्, गांधी जी को दण्डाधिकारी द्वारा सूचना दी गई कि मामला समाप्त (बन्द) कर दिया गया है। आधुनिक भारत में पहली बार नागरिक अवज्ञा ने विजय प्राप्त की थी।
गांधी जी तथा वकीलों ने किसानों की शिकायत पर जाँच करनी आरम्भ की। लगभग दस हज़ार किसान साक्षी बने। दस्तावेज़ (प्रमाण) एकत्रित किये गये। गांधी जी को उप-राज्यपाल, सर एडवर्ड गेट द्वारा बुलवाया गया। वह उप-राज्यपाल से चार बार मिले। जाँच के लिए एक सरकारी कमीशन नियुक्त कर दिया गया।
प्रारम्भ में गांधी जी चम्पारण में सात महीने रहे और फिर कई बार संक्षिप्त भ्रमण के लिए आये। सरकारी जाँच ने बड़े खेतों के स्वामियों के विरुद्ध प्रमाण एकत्रित किये। वे सिद्धान्त रूप से किसानों को धन लौटाने को सहमत हो गये। गांधी जी ने केवल 50 प्रतिशत माँगा। बड़े खेतों के स्वामियों के प्रतिनिधि ने 25 प्रतिशत लौटाने का प्रस्ताव किया। गांधी जी सहमत हो गये। अवरोध समाप्त/टूट गया।
गांधी जी ने स्पष्ट किया कि लौटाई जाने वाली राशि की मात्रा इस तथ्य से कम महत्त्वपूर्ण थी कि जमींदारों को कुछ धन तथा कुछ अपनी प्रतिष्ठा, देने को विवश होना पड़ा था। किसान ने अब देखा कि उसके अधिकार थे तथा उनके रक्षक भी। उसने साहस सीखा। घटनाओं ने गांधी जी की स्थिति को उचित ठहराया। कुछ वर्षों में ही ब्रिटिश भूस्वामियों ने अपने विशाल भूखण्ड छोड़ दिये। ये अब किसानों के पास लौट गये। नील की बटाई की खेती अदृश्य (गायब) हो गई।
चम्पारण के गाँवों के सांस्कृतिक तथा सामाजिक पिछड़ेपन को हटाने के लिए गांधी जी कुछ करना चाहते थे। उन्होंने अध्यापकों के लिए प्रार्थना की। गांधी जी के दो युवा शिष्य, महादेव देसाई तथा नरहरि पारिख, तथा उनकी पत्नियों ने स्वेच्छा से उस काम के लिए स्वयं को पेश किया। कई अन्य भी मुम्बई, पूना तथा देश के सुदूर भागों से आये। गांधी जी का सबसे छोटा पुत्र देवदास, आश्रम से आया तथा श्रीमती गांधी भी आईं। छः गाँवों में प्राथमिक पाठशालाएँ खोली गईं। कस्तूरबा ने व्यक्तिगत स्वच्छता एवं सामुदायिक सफाई के विषय में आश्रम के नियम सिखाये।।
स्वास्थ्य की स्थितियाँ दयनीय थीं। गांधी जी ने एक चिकित्सक से स्वेच्छा से उसकी सेवाएँ छः महीने के लिए प्राप्त कीं। तीन दवाइयाँ । उपलब्ध थीं-अरण्डी का तेल, कुनैन तथा गंधक की मलहम। गांधी जी का ध्यान स्त्रियों के गन्दे वस्त्रों की दशा की ओर गया। एक स्त्री ने कस्तूरबा को बताया कि उसके पास केवल एक ही साड़ी थी। चम्पारण में अपने लम्बे प्रवास के दौरान गांधी जी ने आश्रम पर दूर से चौकसी रखी तथा डाक द्वारा नियमित निर्देश भेजे।
चम्पारण प्रकरण गांधी जी के जीवन में मोड़ वाला (महत्त्वपूर्ण) बिन्दु था। यह अवज्ञा के रूप में आरम्भ नहीं हुआ। यह निर्धन किसानों के कष्ट कम करने के प्रयास के रूप में उत्पन्न हुआ। गांधी जी की राजनीति करोड़ों लोगों की दैनिक समस्याओं से, व्यावहारिक रूप से जुड़ी हुई थी। उन्होंने एक नये स्वतन्त्र भारतीय को आकार देने की चेष्टा की जो अपने पैरों पर खड़ा हो सके तथा इस प्रकार भारत को स्वतन्त्र करा सके।
गांधी जी ने अपने अनुयायियों को आत्मनिर्भरता का भी पाठ पढ़ाया। गांधी जी के वकील मित्रों ने सोचा कि यह अच्छा होगा कि शान्तिवादी चार्ल्स फ्रीअर एंड्रस चम्पारण में ठहरे तथा उनकी सहायता करे। यदि गांधी जी मान जाते, तो एड्स तो सहमत था। किन्तु गांधी जी ने इसका प्रचण्ड विरोध किया। उन्होंने कहा, “मकसद न्यायोचित है तथा युद्ध को जीतने के लिए तुम्हें स्वयं अपने ऊपर निर्भर रहना चाहिए।’
अतः आत्मनिर्भरता, भारतीय स्वतन्त्रता तथा बटाई में खेती करने वाले सभी एक साथ बंधे हुए थे।
Important Questions on Indigo
What was the system of indigo cultivation in Champaran, and how did it exploit the peasants?
Answer: The system of indigo cultivation in Champaran was exploitative. The British planters forced the peasants to cultivate indigo on a portion of their land for which they had to pay rent. The peasants were not allowed to grow food crops on that land. They were also forced to provide free labor and bullocks for indigo cultivation.
Why did Raj Kumar Shukla approach Gandhi, and what was Gandhi’s response?
Answer: Raj Kumar Shukla approached Gandhi to come to Champaran and investigate the indigo cultivation system. Gandhi’s response was positive, and he agreed to come to Champaran to help the peasants.
What was the role of the British authorities in the Champaran satyagraha, and how did they respond to it?
Answer: The British authorities in Champaran initially tried to stop Gandhi from entering the district, but he managed to enter the area with the help of local supporters. The British tried to intimidate the peasants and the satyagrahis by threatening them with imprisonment and violence. However, Gandhi and his followers continued their nonviolent resistance, which ultimately led to negotiations with the British authorities and a settlement of the issue.
What was the significance of the Champaran satyagraha in the Indian freedom struggle?
Answer: The Champaran satyagraha was a significant event in the Indian freedom struggle as it was Gandhi’s first organized nonviolent resistance movement in India. The success of the satyagraha against the British indigo planters gave confidence to the Indian masses that nonviolence could be an effective tool against colonial oppression.
How did the Champaran satyagraha help in the empowerment of the peasants?
Answer: The Champaran satyagraha helped in the empowerment of the peasants by giving them a sense of their own strength and agency. Through the satyagraha, the peasants learned to stand up for their rights and demand justice from the British authorities. The success of the satyagraha also gave the peasants a new confidence in their ability to effect change in their own lives.