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Summary of The Rattrap
“The Rattrap” is a short story written by Selma Lagerlöf, a Swedish author and Nobel Prize winner. The story revolves around a vagabond who lives in poverty and is able to earn a living by selling rattraps made from wire. The rattrap seller is able to make a little money by selling his handmade traps, but he also finds himself constantly on the run from the law and is forced to live a life of constant fear.
One winter evening, the rattrap seller comes across a secluded cottage where he is taken in by an old man who provides him with food and shelter. The rattrap seller is initially suspicious of the old man’s kindness but eventually realizes that the man is genuine and means him no harm. During their conversation, the old man reveals that he had once been a wealthy ironmaster but had fallen on hard times and was now living a solitary life in his cottage.
The next morning, the rattrap seller steals the old man’s money and runs away. He is later caught by the authorities and taken to the ironworks, where he is imprisoned for theft. However, the old man comes to his rescue and vouches for his innocence, revealing that the money was a gift and not stolen.
The rattrap seller is touched by the old man’s kindness and decides to change his ways. He promises to live a more honest life and even offers to repay the old man for the money he had stolen. The story ends with the rattrap seller walking away, grateful for the second chance he had been given and determined to make the most of it.
Overall, the story highlights the power of kindness and how it can inspire people to change their ways. It also emphasizes the importance of treating others with respect and generosity, regardless of their circumstances or social status.
Conclusion of The Rattrap
To sum up, in The Rattrap summary, we learn that we can change the world through kindness and compassion; in addition, it teaches us that materialistic things never bring inner joy, only love and respect does.
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About the Author
The author of “The Rattrap” is Swedish writer Selma Lagerlöf, who was born on November 20, 1858, in Mårbacka, Sweden. She was the first woman to receive the Nobel Prize in Literature in 1909.
Lagerlöf’s writing career began with her novel “Gösta Berling’s Saga,” which was published in 1891 and became a bestseller in Sweden. She went on to write several other novels, short stories, and essays, often drawing inspiration from Swedish folklore and mythology.
- The Last Lesson Summary
- Lost Spring Summary
- Deep Water Summary
- The Rattrap Summary
- Indigo Summary
- Poets and Pancakes Summary
- The Interview Summary
- Going Places Summary
Summary of The Rattrap in Hindi
एक समय एक व्यक्ति तार की बनी हुई चूहे पकड़ने की छोटी चूहेदानियाँ (पिंजरे) बेचता हुआ घूमता रहता था। वह इन्हें स्वयं बनाता था किन्तु उसका धन्धा लाभदायक नहीं था। अतः स्वयं को जीवित रखने के लिए उसे भीख माँगनी पड़ती थी तथा थोड़ी-सी चोरी भी करनी पड़ती थी। उसके वस्त्र फटे चिथड़े थे। उसके गाल धंसे हुए थे आँखों से भूख दिख सकती थी। उसका जीवन उदासी तथा एकरसता भरा था। उसका कोई साथी नहीं था।
एक दिन उसे एक विचार सूझा कि पूरा संसार एक बड़ी चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। यह लोगों को धन एवं प्रसन्नता, भोजन तथा घर, गर्मी तथा वस्त्र भेंट करके उसी प्रकार चुग्गा (चारा) डालता है जैसे चूहेदानी में पनीर तथा सूअर का मांस हो। ज्यों ही कोई व्यक्ति प्रलोभित होकर इस ललचाने वाले चारे को छुएगा, वह चूहेदानी में बन्द हो जाएगा, और तब प्रत्येक बात (वस्तु) समाप्त हो जाएगी।
एक अँधेरी शाम को वह भारी कदमों से धीरे-धीरे चल रहा था तभी उसने सड़क के समीप एक छोटा-सा भूरा कुटीर देखा। उसने रात के लिए शरण माँगने के लिए द्वार खटखटाया। इसका स्वामी एक वृद्ध व्यक्ति था। उसकी पत्नी अथवा कोई बच्चा नहीं था। अकेलेपन में किसी ऐसे व्यक्ति को पाकर जिससे कि वह बातें कर सके, वह प्रसन्न था। उसने रात के अल्पाहार के लिए उसे हलवा तथा धूम्रपान की पाइप के लिए तम्बाकू दिया। फिर उसने अपनी पुरानी ताश की गड्डी निकाली और सोने का समय होने तक अपने अतिथि। के साथ ‘mj ⍤lis’ नामक खेल खेला।
अपने समृद्धि के दिनों में स्वागतकर्ता रैम्सजो आयरनवर्स में खेती का स्वामी था। उसने भूमि पर काम किया था। अब वह शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता था। उसकी गाय उसे सहारा देती थी। यह असाधारण गाय मक्खन बनाने के कारखाने के लिए प्रतिदिन दूध दे सकती थी। उसने अजनबी को बताया कि पिछले महीने उसे भुगतान में पूरे तीस क्रोनर प्राप्त हुए थे। खेतिहर ने अपने अतिथि को तीन मुड़े-तुड़े दस-दस क्रोनर के नोट दिखाये, जो उसने चमड़े के उस बटुए से निकाले जो एक कील से खिड़की की चौखट में लटका हुआ था।
अगले दिन दोनों व्यक्ति जल्दी उठे। भू-स्वामी को अपनी गाय को दुहने की शीघ्रता थी तथा दूसरा व्यक्ति भी तब बिस्तर में नहीं पड़ा रहना चाहता था जबकि उसका स्वागतकर्ता जाग चुका हो। वे एक साथ कुटीर छोड़ कर गये। भू-स्वामी ने द्वार को ताला लगाया तथा चाबी अपनी जेब में रख ली। चूहेदानी वाले व्यक्ति ने अपने मेज़बान (स्वागतकर्ता) को अलविदा तथा धन्यवाद कहा और चला गया। आधे घंटे के उपरान्त चूहेदानी बेचने वाला व्यक्ति लौट आया। उसने खिड़की का शीशा तोड़ा, अपना हाथ भीतर डालकर बटुए को लपक लिया। उसमें से उसने धन निकाला और अपनी जेब में हँस लिया। फिर उसने अत्यन्त सावधानी से चमड़े के बटुए को उसके स्थान पर लटका दिया तथा वहाँ से दूर चला गया।
उसे अपनी चुस्ती पर प्रसन्नता महसूस हुई। फिर उसने महसूस किया कि उसे सार्वजनिक पथ पर और आगे चलने का साहस नहीं करना चाहिए। अतः उसने जंगल का मार्ग पकड़ लिया। वह एक विशाल तथा भ्रमित करने वाले वन में चला गया। उसने महसूस किया कि वह वन के एक ही (समान) भाग में चक्कर काटे जा रहा था। उसने सोचा कि उसने स्वयं को शिकार फँसाने वाले चारे द्वारा मूर्ख बनने दिया तथा पकड़ा गया। सारा वन उसे एक अभेद्य कारागार प्रतीत होने लगा जिससे वह कभी बचकर निकल नहीं पायेगा।
दिसम्बर के कई दिन बीत चुके थे। अँधेरे ने खतरे तथा उसकी उदासी और निराशा को बढ़ा दिया। वह भूमि पर धंस गया क्योंकि वह बिल्कुल थक गया था। सभी उसे हथौड़े की चोटों की ध्वनि सुनाई दी। उसने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की, उठ खड़ा हुआ तथा लड़खड़ाता हुआ ध्वनि की दिशा में चल पड़ा। वह लोहां पिघलाकर गढ़ने वाली एक भट्ठी के पास पहुँचा जहाँ लुहार मिस्त्री तथा उसका सहायक भट्टी के निकट बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे कि कच्चा लोहो गर्म होकर तैयार हो ताकि वे इसे घन (निहाई) पर रख सकें। वहाँ कई ध्वनियाँ थीं-बड़ी कनियाँ कराहती थीं, जलता हुआ कोयला चटखकर टूटता था, आग में ईंधन झोंकने वाला लड़का काफी खनक के साथ फावड़े से लकड़ी का कोयला फेंकता था, जल-प्रपात दहाड़ता था, तीव्र उत्तरी पवन ईंटों की टाइलों से बनी छत पर तेज़ी से वर्षा कर रही थी। इन सारे शोर के कारण लुहार ने यह ध्यान नहीं दिया कि एक व्यक्ति ने फाटक खोला था तथा लुहारखाने की भट्ठी में प्रवेश कर गया था जब तक कि वह व्यक्ति भट्ठी के पास ही न पहुँच गया।
लुहारों ने मात्र लापरवाही तथा उदासीनता से इस बिना बुलाये आने वाले की ओर निहारा जिसकी लम्बी दाढ़ी थी, गन्दे, फटे चीथड़े थे तथा उसकी छाती पर चूहेदानियों का एक गुच्छा झूल (लटक) रहा था। फेरी वाले ने ठहरने की आज्ञा माँगी। बिना कोई शब्द कहे लुहार मिस्त्री ने सिर हिलाकर गर्वीली सहमति प्रकट की। तभी लोहे का स्वामी जो रैम्सजो आयरन मिल का मालिक था, कारखाने के लुहारखाने में निरीक्षण हेतु अपने रात्रि दौरे पर आ पहुँचा।
लोहे के कारखाने के स्वामी ने देखा कि गन्दे फटे वस्त्रों में एक व्यक्ति भट्ठी के इतना समीप चला गया था कि उसके गीले चिथड़ों से भाप उठ रही थी। वह चलता हुआ उसके समीप पहुँचा तथा उसे अत्यन्त ध्यानपूर्वक देखा। फिर उसने उसको टोप, जिसको चौड़ा मुड़ने वाला किनारा था, खींचा ताकि उसके चेहरे को अधिक अच्छे ढंग से देख सके। उसने उसे निल्स ओल्फ’ पुकारा तथा आश्चर्य व्यक्त किया कि वह कैसा दिखता था।
चूहेदानी वाले व्यक्ति ने रैम्सजो के लोहे के कारखाने के स्वामी को पहले कभी नहीं देखा था तथा नहीं जानता था कि उसका नाम क्या है। उसने सोचा कि शायद लोहे का स्वामी अपने पुराने परिचित को दो-एक क्रोनर फेंक दे। अतः उसने उसे यह नहीं बताया कि वह गलती पर था। लोहे के कारखाने के स्वामी ने कहा कि उसे रेजीमेंट से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। फिर उसने अजनबी से अपने साथ घर आने को कहा। आवारा घुम्मकड़ सहमत नहीं हुआ। उसने तीस क्रोनर के विषय में सोचा। लोहे के कारखाने के स्वामी के घर जाने का अर्थ होगा स्वयं को शेर की माँद में फेंक देना।
लोहे के कारखाने के स्वामी ने यह मान लिया कि वह दयनीय वस्त्रों के कारण परेशानी महसूस कर रहा था। उसने कहा कि उसकी पत्नी ऐलिजाबेथ का देहान्त हो चुका था, उसके पुत्र विदेश में थे तथा केवल उसकी सबसे बड़ी पुत्री उसके साथ थी। उसने अजनबी को अपने साथ क्रिसमस व्यतीत करने का निमन्त्रण दे दिया। अजनबी ने तीन बार ”नहीं” कहा। लोहे के कारखाने के स्वामी ने लुहार स्ट्ज़र्न स्ट्रोम को कहा कि कैप्टन वॉन स्टाहले उस रात उसके साथ रुकना अधिक पसन्द करता था। वह स्वयं अपने आपमें हँसा तथा चला गया।
आधे घंटे के उपरान्त लुहारखाने के बाहर घोड़ागाड़ी के पहियों की आवाज सुनाई दी। लोहे के कारखाने के स्वामी की बेटी वहाँ आई, जिसके पीछे एक सेवक था जो बड़ा नर्म रेशों वाला ऊनी कोट उठाए हुए था। उसने अपना परिचय एडला विलमैन्सन के रूप में। दिया। उसने देखा कि वह व्यक्ति डरा हुआ था। उसने सोचा कि या तो उसने कुछ चुराया है अथवा वह जेल से बच निकला है। किन्तु उसने उसे यकीन दिलाया कि उसे उसी प्रकार स्वतन्त्र रूप से जाने की अनुमति होगी जैसे कि वह आया था। उसने उसे कैप्टन कहकर सम्बोधित किया तथा प्रार्थना की कि वह उनके साथ क्रिसमस की पूर्व सन्ध्या पर रुके। उसने यह इतने मैत्रीपूर्ण लहजे से कहा कि चूहेदानी विक्रेता उसके साथ जाने को सहमत हो गया । रोयेंदार ऊनी कोट उसके चिथड़ों के ऊपर डाला गया तथा वह युवा महिला के पीछे घोड़ागाड़ी तक गया। रास्ते में फेरीवाले विक्रेता ने सोचा कि उसने उस व्यक्ति का धन क्यों लिया। वह पिंजरे (चूहेदानी) में बैठ गया था तथा कभी इससे बाहर नहीं निकल पायेगा।
अगले ही दिन क्रिसमस की पूर्व सन्ध्या थी। लोहे के कारखाने का स्वामी भोजन कक्ष में नाश्ते के लिए आया। उसने रेजीमेंट के अपने उस पुराने साथी के विषय में सोचा जिससे वह अचानक बिना किसी आशा के ही मिला था। उसने सन्तुष्ट महसूस किया तथा उसे भली प्रकार से भोजन कराने तथा कुछ सम्मानजनक काम देने की सोची। उसकी बेटी ने कहा कि पिछली रात उसने उसमें कोई भी ऐसी बात नहीं देखी जो यह दर्शाये कि वह एक शिक्षित व्यक्ति था। लोहे के कारखाने के स्वामी ने उससे धैर्य रखने को कहा तथा समझाया कि उसे स्वच्छ होने तथा वस्त्र पहनने दे। तब वह कुछ पृथक् देखेगी। घुम्मकड़ के आचरण के ढंग घुम्मकड़ के वस्त्र त्यागते ही बदल जायेंगे। तभी अजनबी ने अच्छे दिखने वाला सूट, सफेद कमीज, माँड लगा हुआ कालर वाला तथा सफेद जूते पहनकर प्रवेश किया। यद्यपि वह भली-भाँति साफ-सुथरा था तथा अच्छे वस्त्र पहने हुआ था फिर भी लोहे के कारखाने का स्वामी प्रसन्न प्रतीत नहीं हुआ। उसने इस तथ्य को समझा कि पिछली रात उससे गलती हो गई थी। अब दिन के पूरे प्रकाश में उसे एक परिचित के रूप में (गलती से) समझना असम्भव था। अजनबी ने दूसरे का स्थान लेकर छल करने का कोई प्रयास नहीं किया। उसने स्पष्ट किया कि उसका कोई दोष नहीं था। उसने एक निर्धन व्यापारी होने के अतिरिक्त कोई और बहाना (ढोंग) नहीं किया था। उसने तो लोहे के स्वामी को उसे लुहारखाने में रुकने की आज्ञा देने को कहा था। वह अपने चिथड़े पहनकर जाने को तैयार था।
लोहे के कारखाने के स्वामी ने सोचा कि उस व्यक्ति में ईमानदारी नहीं थी तथा वह शेरिफ को बुलाना चाहता था। आवारा भटकने वाले (भिखारी) ने तब लोहे के स्वामी को बताया कि पूरा संसार एक बड़ी चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ नहीं था। जो सारी अच्छी वस्तुएँ उसे पेश की गई थीं वे पनीर की ऊपरी परत तथा सूअर के मांस के टुकड़ों के अतिरिक्त कुछ नहीं थीं, जो किसी असहाय (निर्धन) व्यक्ति को कष्ट में डालने के लिए लगाई गई थी। सम्भव था शेरिफ इसके लिए उसे जेल में बन्द कर दे। उसने लोहे के कारखाने के स्वामी को चेतावनी दी कि एक ऐसा दिन भी आना सम्भव था जब वह मांस का एक बड़ा टुकड़ा प्राप्त करना चाहे तथा तब वह पिंजरे में पकड़ा जायेगा।
लोहे के कारखाने का स्वामी हँसने लगा। उसने शेरिफ को सूचना भेजने का विचार त्याग दिया। किन्तु उसने उस आवारा भिखारी को जाने को कहा तथा द्वार खोल दिया। तभी उसकी पुत्री ने प्रवेश किया तथा उसने पिता से पूछा कि वह क्या कर रहा था। उस प्रातः वह अत्यन्त प्रसन्न थी। वह उस अभागे के लिए घर जैसी चीजें बनाना चाहती थी अतः वह उस वृथा घूमने वाले (आवारा) के पक्ष में बोली। वह चाहती थी कि वह उनके साथ एक दिन शान्ति का बिताये-पूरे वर्ष में केवल एक दिन। वह जानती थी कि गलती हो गई थी किन्तु उन्हें उस व्यक्ति को खदेड़कर नहीं भगाना चाहिए जिसे उन्होंने वहाँ आने को कहा था तथा क्रिसमस की खुशियाँ बाँटने का वायदा किया था। लोहे के कारखाने के स्वामी ने आशा की कि उसे इस पर अफसोस (खेद) नहीं करना पड़ेगा।
युवा लड़की अजनबी को मेज़ तक ले गई तथा उसे बैठने और खाने को कहा। उस व्यक्ति ने एक शब्द भी नहीं बोला किन्तु भोजन करने लगा। वह लड़की की ओर देखता तथा आश्चर्य करता रहा कि उसने उसके पक्ष में हस्तक्षेप क्यों किया था। रैम्सजो में क्रिसमस की पूर्व सन्ध्या सदा की भाँति बीत गई। अजनबी ने कोई कष्ट नहीं पहुँचाया क्योंकि उसने सोने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। उन्होंने उसे केवल इसलिए जगाया कि वह भोजन कर सके। शाम को क्रिसमस के वृक्ष में प्रकाश किया गया। दो घंटे पश्चात् उसे फिर जगाया गया ताकि वह क्रिसमस की मछली तथा हलवा ले सके। मेज़ से उठने के पश्चात वह चारों ओर गया तथा उसने वहाँ विद्यमान प्रत्येक व्यक्ति को धन्यवाद तथा शुभ-रात्रि कहा। लड़की ने उसे बताया कि जो सूट वह पहने हुए था वह उसके लिए क्रिसमस का उपहार था। तथा उसे यह लौटाना नहीं था। यदि वह अगली क्रिसमस की पूर्व की सन्ध्या शान्ति से बिताना चाहे, तो उसका पुनः स्वागत किया जायेगा। चूहेदानियाँ बेचने वाले व्यक्ति ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह केवल सीमाहीन (अनन्त) आश्चर्य (हैरानी) से उस युवा लड़की को देखता रही।
अगले दिन लोहे के कारखाने का स्वामी तथा उसकी पुत्री जल्दी उठे ताकि वे गिरजाघर की प्रार्थना में जा सकें। वे वहाँ से दस बजे के लगभग घोड़ागाड़ी में चले। लड़की बैठी हुई थी तथा उसने सामान्य दिनों की अपेक्षा अपना सिर अधिक निराशा से कुछ ज्यादा झुका रखा था। गिरजाघर में उसे पता लगा कि लोहे के कारखाने के एक पुराने भू-स्वामी को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लूट लिया गया था जो चूहेदानियाँ बेचता फिरता था। लोहे के स्वामी को भय था कि उसने अलमारी से चाँदी के कई चम्मच चुरा लिए होंगे। जब छकड़ा सामने वाली सीढ़ियों के पास रुका तो उसने सेवक से अजनबी के विषय में पूछा। सेवक ने बताया कि अजनबी जा चुका था। वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले गया था, किन्तु कुमारी विलिमैन्सन के लिए एक पैकेट क्रिसमस के उपहार के रूप में छोड़ गया था।
पैकेट खोलने पर, उसने प्रसन्नता भरी एक छोटी-सी चीख मारी। उसने एक छोटी-सी चूहेदानी पायी, तथा इसके भीतर तीन झुरीदार (मुड़े-तुडे) दस क्रोनर वाले नोट पड़े थे। उसे सम्बोधित करके लिखा हुआ एक पत्र भी वहाँ था। वह उसे एक चोर के द्वारा लज्जित नहीं। होने देना चाहता था अपितु कैप्टन की भाँति व्यवहार करना चाहता था। उसने उसे (लड़की) से प्रार्थना की कि वह यह धनराशि सड़क के पास वाले उस वृद्ध व्यक्ति को लौय दे जिसने धन का बटुआ इधर-उधर घूमने वाले (आवारा) लोगों को ललचाने के लिये मांस के टुकड़े की भाँति खिड़की की चौखट में लटका रखा था। चूहेदानी एक ऐसे चूहे की ओर से उपहार था जो इस संसार की चूहेदानी में फँस गया होता यदि उसे कैप्टन के पद पर तरक्की न दी गई होती, क्योंकि इस ढंग से उसे स्वयं को स्वच्छ (साफ) करने की शक्ति मिली।
Important Questions on The Rattrap
- What is the theme of the story “The Rattrap”?
Answer: The theme of the story “The Rattrap” is the struggle for human dignity and the power of kindness to transform a person’s life.
- Who is the protagonist of the story “The Rattrap”?
Answer: The protagonist of the story “The Rattrap” is an unnamed tramp who is struggling to survive.
- What is the significance of the rattrap in the story?
Answer: The rattrap is a symbol of the tramp’s life, which is filled with traps and obstacles. It also represents the idea that life is a trap for people who are poor and marginalized.
- How does the tramp’s encounter with Edla change his life?
Answer: Edla’s kindness and compassion towards the tramp helps him to see that there is goodness in the world and that he is not alone. This realization gives him hope and inspires him to change his life.
- What is the moral lesson of the story “The Rattrap”?
Answer: The moral lesson of the story “The Rattrap” is that kindness and compassion can transform a person’s life, no matter how trapped or hopeless they may seem.