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Summary of The Last Lesson
The story begins with a description of Seemapuri, a town made up of temporary shanties and inhabited by a large population of ragpickers who survive by collecting and selling scraps of paper, plastic, and metal. We are introduced to Saheb, a young boy who dreams of escaping this life and becoming a tailor.
Despite his ambitions, Saheb is forced to work as a ragpicker alongside his mother and siblings. The family lives in a small, cramped room and struggles to make ends meet. Saheb’s mother is illiterate and has no skills other than ragpicking, so the family is trapped in a cycle of poverty with no hope of escaping.
The story also introduces us to Mukesh, a young boy who has managed to escape from the life of a ragpicker and is now attending school. Mukesh’s story highlights the importance of education as a means of breaking free from poverty and creating a better life.
The story ends with a description of the lost springs of Seemapuri, which have been covered up by garbage and forgotten by the people who live there. The lost springs serve as a metaphor for the lost hopes and dreams of the ragpickers, who are trapped in a cycle of poverty with no hope of escape.
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Conclusion of Lost Spring
Overall, “Lost Spring” is a powerful story that highlights the devastating impact of poverty on the lives of children and families in India. It underscores the importance of education and the need for social and economic reforms to break the cycle of poverty and create a better future for all.
About the Author
Anees Jung is an Indian author and journalist born in 1944 in Hyderabad, India. She grew up in Hyderabad and later studied at the University of Lucknow and the University of Delhi. After completing her education, she worked as a journalist for various newspapers and magazines in India, including The Times of India and India Today.
As an author, Anees Jung is known for her writings on social issues, particularly those affecting women and children in India. Her works include books such as “Unveiling India” and “Beyond the Great Wave: The Japanese Landscape in Prints.” Her writing often explores the intersection of culture, identity, and politics in modern India.
- The Last Lesson Summary
- Lost Spring Summary
- Deep Water Summary
- The Rattrap Summary
- Indigo Summary
- Poets and Pancakes Summary
- The Interview Summary
- Going Places Summary
Summary of Lost Spring in Hindi
. “कभी-कभी मुझे कूड़े के ढेर में एक रुपया मिल जाता है।
लेखिका की प्रतिदिन साहेब से भेंट होती है। वर्षों पहले साहेब बांग्लादेश में अपना घर छोड़कर आ गया था। वह पड़ोस में कूड़े के ढेरों से सोना खंगालने का प्रयास कर रहा होता है। लेखिका साहेब से पूछती है कि वह ऐसा क्यों करता है। साहेब बड़बड़ाता है कि उसके पास करने को और कुछ नहीं है। उसके पड़ोस में कोई विद्यालय नहीं है। वह निर्धन है तथा नंगे पैर काम करता है।
साहेब जैसे अन्य 10,000 जूतेविहीन कूड़े के ढेर में से कबाड़ उठाने वाले हैं। ये लोग दिल्ली के बाहरी किनारे पर सीमापुरी में रहते हैं- मिट्टी के घरौंदों में, जिन पर टीन या तिरपाल की छत है किन्तु वे मल-निकास, गन्दे पानी की नालियों अथवा पेयजल से वंचित हैं। ये अनधिकृत रूप से भूमि पर कब्जा करने वाले वे बांग्लादेशी हैं जो 1971 में यहाँ आये थे। वे पिछले 30 वर्ष से बिना किसी पहचानपत्र या आज्ञा-पत्र के रह रहे हैं।
वे मतदान के पात्र हैं। राशन कार्ड की सहायता से उन्हें अनाज मिल जाता है। जीवित रहने के लिए भोजन पहचान-पत्र से कहीं अधिक आवश्यक है। उन्हें जहाँ कहीं भोजन मिल जाता है, वहीं अपने तम्बू लगा लेते हैं जो उनके गमन-भवन बन जाते हैं। उनमें बच्चे बड़े होते हैं, तथा जीवित रहने में भागीदार बन जाते हैं। सीमापुरी में जीवित रहने का अर्थ है कूड़े-करकट को खंगालना। वर्ष बीतने के साथ कूड़ा-करकट में से मूल्यवान वस्तुएँ ढूंढना एक कला का रूप धारण कर लिया है। उनके लिये कूड़ा तो सोना है। यह उनकी दैनिक रोटी है तथा सिर के ऊपर की छत ।
कई बार साहेब कूड़े के ढेर में एक रुपया अथवा दस रुपये का नोट पा लेता है। तब अधिक पाने की आशा होती है। कूड़े-करकट का उनके लिए उनके माता-पिता की समझ से अलग अर्थ है। बच्चों के लिए यह आश्चर्य से लिपटा हुआ है, बड़ों के लिए यह जीवित रहने का साधन है।
सर्दी में एक प्रात:काल लेखिका साहेब को पड़ोस के एक क्लब के कांटेदार बाड़ लगे द्वार के पास खड़ा पाती है। वह दो नवयुवकों को टेनिस खेलते हुए देख रहा है। वे सफेद वस्त्र पहने हुए हैं। साहेब को यह खेल अच्छा लगता है, किन्तु वह इस बाड़ के पीछे खड़े रहकर देखने से ही सन्तुष्ट है। साहेब किसी के त्यागे (फॅके) हुए टेनिस के जूते पहने हुए है जो उसकी रंग उड़ी हुई कमीज तथा निकर पर अजीब लगते हैं। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो नंगे पैर चला हो, छेद वाला जूता भी एक स्वप्न के सत्य होने जैसा है। किन्तु निस उसकी पहुँच से बाहर है।
इस प्रात:काल साहेब दूध की दुकान की ओर जा रहा है। उसके हाथ में एक स्टील का डिब्बा है। वह एक चाय की दुकान पर काम करता है। उसे 800 रुपये तथा उसके तीने समय का भोजन मिलता है। साहेब अब अपनी मर्जी का मालिक नहीं है। उसके चेहरे से चिन्तामुक्त दिखना लुप्त (गायब) हो गया है। चाय की दुकान में काम करके वह प्रसन्न प्रतीत नहीं होता।
II. मैं कार चलाना चाहता हूँ।”
फिरोजाबाद में लेखिका की मुकेश से भेंट होती है। उसका परिवार चूड़ियाँ बनाने में लीन है किन्तु मुकेश स्वयं अपना स्वामी बनने की जिद्द पर डटा हुआ है। वह घोषण करता है, “मैं एक मोटर-मैकेनिक बनूंगा।” वह कहता है, “मैं कार चलाना सीखेंगा”
फिरोजाबाद अपनी चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक दूसरा परिवार चूड़ियाँ बनाने के काम में व्यस्त है। परिवारों ने भट्ठियों के सामने काम करते हुए, शीशे को जोड़ लगाते हुए, स्त्रियों के लिए चूड़ियाँ बनाते हुए कई पीढ़ियाँ बिता दी हैं। उनमें से कोई भी यह नहीं जानता कि मुकेश जैसे छोटे बालक के लिए उच्च तापमान वाली शीशे की भट्ठी पर वायु एवं प्रकाश रहित तंग कोठरी में काम करना अवैध (गैर-कानूनी) है। वे दिन के प्रकाश के पूरे समय कठोर परिश्रम करते रहते हैं, प्रायः अपनी आँखों की चमक खो बैठते हैं। यदि कानून को कठोरता से लागू किया जाये, तो यह मुकेश तथा उस जैसे 20,000 बच्चों को गर्म भट्ठियों से मुक्त कर देगा।
वे बदबूदार तंग गलियों से जो कूड़े-करकट से भरी पड़ी हैं, उन घरों के समीप से गुजरते हुए जाते हैं जो ढहती हुई दीवारों, अस्थिर लटकते हुए दरवाजों एवं खिड़की रहित तंग कोठरियाँ मात्र हैं। यहाँ मानव तथा पशु एक साथ निवास करते हैं। वे आधी निर्मित एक फूहड़ झोपड़ी में पहुँचते हैं। इसके एक भाग में सूखी घास की छत लगी है। एक कमजोर नवयुवती लकड़ी के चूल्हे पर शाम का भोजन बना रही है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है तथा तीन पुरुषों की देखभाल करने वाली है उसका पति, मुकेश तथा उनका पिता। पिता एक निर्धन चूड़ियाँ बनाने वाला है। वर्षों तक कठोर परिश्रम करने के बावजूद, पहले एक दर्जी के रूप में तथा फिर चूड़ियाँ बनाने वाले के रूप में, वह एक मकान को पुनः बनाने तथा अपने दोनों बालकों को विद्यालय भेजने में असमर्थ रहा है। जो कुछ वह उन्हें सिखा पाया है वह वही है जो वह जानता है- चूड़ियाँ बनाने की कला।।
मुकेश की दादी ने चूड़ियों के शीशों की पालिश करने से उड़ी धूल से अपने पति को अन्धा होते हुए देखा है। वह कहती है कि यह उसका भाग्य है। उसका निहित अर्थ है कि प्रभु प्रदत्त कुटुम्ब रेखा नहीं तोड़ी जा सकती। वे चूड़ी निर्माताओं की जाति में उत्पन्न हुये हैं और उन्होंने विभिन्न रंग की चूड़ियों के अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं देखा है। लड़के तथा लड़कियाँ अपने माता-पिता के साथ बैठकर रंगीन शीशे के टुकड़ों को जोड़कर चूड़ियों के वृत्त बनाते हैं। वे अंधेरी झोंपड़ियों में तेल के दीयों की टिमटिमाती हुए लौ की पंक्तियों के आगे काम करते हैं। उनकी आँखें बाहर के प्रकाश की अपेक्षा अंधेरे में अधिक अभ्यस्त हैं। वयस्क होने से पहले ही प्राय: वे कई बार अपनी आँखों की ज्योति खो देते हैं।
फीकी गुलाबी पोशाक पहने हुए एक युवा लड़की सविता एक बुजुर्ग महिला के साथ बैठी है। वह शीशे के टुकड़ों को टांके लगा रही है। उसके हाथ किसी मशीन के चिमटों की भाँति मशीनी रूप से चलते हैं। शायद वह उन चूड़ियों की पवित्रता के विषय में नहीं जानती जिनको बनाने में वह सहायता करती है। उसके पास बैठी स्त्री ने जीवनपर्यन्त एक बार भी भरपेट भोजन का आनन्द नहीं लिया है। उसका पति लहराती हुई दाढ़ी वाला वृद्ध व्यक्ति है। वह चूड़ियों के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता। उसने परिवार के निवास हेतु एक मकान बनाया है। उसके सिर पर छत है।
फिरोजाबाद में समय के साथ बहुत कम बदलाव हुआ है। परिवारों के पास खाने को पर्याप्त भोजन नहीं है। उनके पास इतना धन नहीं है कि चूड़ियाँ बनाने के धन्धे को जारी रखने के अतिरिक्त कोई अन्य काम कर सकें। वे उन बिचौलियों के कुचक्र में फैंस गए हैं। जिन्होंने उनके पिता तथा दादा-परदादा को जाल में फँसाया था। वर्षों तक मस्तिष्क को सुन्न कर देने वाले परिश्रम ने उनके पहल करने की सभी भावनाओं तथा स्वप्न देखने की सामर्थ्य को समाप्त कर दिया है। वह किसी सहकारी संस्था में संगठित होने के अनिच्छुक हैं। उन्हें भय है कि पुलिस द्वारा उनको ही अवैध कार्य करने के लिए पकड़ा जायेगा, पीटा जायेगा तथा कारागार में डाल दिया जायेगा। उनके मध्य कोई नेता नहीं है। कोई भी उन्हें वस्तुओं को पृथक रूप से देखने में सहायता नहीं करता। वे सब थके हुए प्रतीत होते हैं। वे गरीबी (निर्धनता), उदासीनता, लालच तथा अन्याय की बातें करते हैं।
दो स्पष्ट संसार दिखाई देते हैं-एक, गरीबी में फँसे परिवार, जो कि बोझा ढो रहे हैं उसे कलंक का, जिस जाति में उन्होंने जन्म लिया है; दूसरे, महाजनों, बिचौलियों, पुलिसवालों, कानून के रखवालों तथा राजनीतिज्ञों का दुष्चक्र। उन्होंने एक साथ मिलकर बच्चे पर इतना भार (सामान) लाद दिया है कि वह इसे नीचे भी नहीं रख सकता वह इसे उतने ही स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेता है, जैसे कि उसके पिता ने किया था। कोई अन्य काम करने का अर्थ होगा-साहस करना तथा साहस करने का उनके बड़े होने में कोई हिस्सा नहीं है। लेखिका को तब प्रसन्नता होती है जब वह मुकेश में इसकी चमक देखती है जोकि मोटर-मैकेनिक (मिस्त्री) बनना चाहता है।\
Important Questions on Lost Spring
What is the significance of the title “Lost Spring” in the story?
Answer: The title “Lost Spring” represents the loss of childhood and innocence of the child laborers who are forced to work instead of getting an education. It is also symbolic of the loss of hope for a better future for these children.
What is the main message of the story “Lost Spring”?
Answer: The main message of the story “Lost Spring” is the plight of child laborers who are forced to work in the streets of India instead of going to school. The story sheds light on the social and economic conditions that force these children into labor and highlights the need for education and awareness to improve their situation.
Why does Saheb feel a sense of liberation while working as a ragpicker?
Answer: Saheb feels a sense of liberation while working as a ragpicker because he is no longer bound by the strict rules of his father’s profession of metalwork. He is also able to earn more money as a ragpicker and is no longer dependent on his father for his basic needs.
What is the significance of Mukesh’s statement “there are a million rupees in those heaps”?
Answer: Mukesh’s statement “there are a million rupees in those heaps” highlights the irony of the situation where the ragpickers are surrounded by heaps of valuable waste but are themselves living in poverty. It also highlights the fact that their hard work goes unrecognized and is undervalued in society.
What is the role of education in the story “Lost Spring”?
Answer: Education plays a crucial role in the story “Lost Spring” as it is the key to liberating children from the vicious cycle of poverty and child labor. The story emphasizes the need for education and awareness to improve the social and economic conditions of child laborers and their families.