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Summary of Deep Water
“Deep Water” is a short story written by William Douglas, which narrates his personal experience of overcoming his fear of water by learning to swim. The story is set in Yakima, Washington, where the author spent most of his childhood.
The story begins with Douglas describing his fear of water, which started when he was a child. He mentions how he would avoid going to swimming pools or even crossing rivers. He believed that he was not meant to swim, and even the thought of it would cause him great anxiety.
However, as Douglas grew older, he realized that his fear of water was holding him back from many experiences. He became determined to overcome it and started taking swimming lessons. Initially, he struggled with learning the basic techniques, and his fear only intensified when he realized that he would have to jump off a high diving board.
But Douglas persisted, and with the help of his instructor, he gradually improved. He practiced every day, and soon he was able to jump off the diving board with confidence. He even participated in a swimming competition and won a medal.
The story ends with Douglas reflecting on how overcoming his fear of water had a profound impact on his life. It gave him the confidence to face other challenges and take risks, both in his personal and professional life. He also realized that fear is not something that should hold a person back and that with determination and perseverance, anyone can overcome it.
In summary, “Deep Water” is a story about conquering one’s fears and gaining self-confidence. It emphasizes the importance of determination, practice, and taking risks to achieve one’s goals.
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Conclusion of Deep Water
To sum up, in Deep Water summary, we learn that if we are determined enough and have the courage, we can overcome any fear that comes our way without letting the fear overpower us.
- The Last Lesson Summary
- Lost Spring Summary
- Deep Water Summary
- The Rattrap Summary
- Indigo Summary
- Poets and Pancakes Summary
- The Interview Summary
- Going Places Summary
About the Author
William O. Douglas was an American jurist and writer, born in Minnesota in 1898. He served as an Associate Justice of the Supreme Court of the United States from 1939 to 1975, making him the longest-serving justice in the history of the Supreme Court.
Apart from his legal career, Douglas was also an accomplished writer, publishing numerous books, articles, and essays on various topics ranging from law and politics to environmental issues and outdoor adventures. He was an avid outdoorsman and conservationist, and many of his writings reflect his love for nature and the environment.
Summary of Deep Water in Hindi
विलियम ओ० डगलस बचपन की एक दुर्घटना को याद करता है। यह तब घटित हुई थी जब वह दस अथवा ग्यारह वर्ष का था। उसने तैरना सीखने का निश्चय किया था। याकिमा में वाई०एम०सी०ए० में एक तालाब था, जो कि सुरक्षित था। यह छिछले सिरे पर केवल दो अथवा तीन फुट गहरा था तथा दूसरे सिरे पर नौ फुट गहरा था। गहराई (झुकाव) शनैः शनैः थी। उसने पानी में तैरने के पंखों की एक जोड़ी ली तथा तालाब पर चला गया। वह पानी में नंगे चलने से तथा अपनी अत्यन्त पतली टाँगें दिखाने से घृणा करता था।
जब लेखक तीन या चार वर्ष का था तभी से उसे पानी के प्रति अरुचि (घृणा) हो गई थी। उसके पिता उसे कैलिफोर्निया में समुद्र तट (किनारे) पर ले गए। वे समुद्री झाग पर इकट्ठे खड़े हुए थे। लहरों ने उसे नीचे गिरा दिया तथा उसके ऊपर से बहने लगीं। वह पानी में दफ़न हो गया। उसकी सांस चली गई। वह डर गया। उसके पिता हँसे, किंतु लहरों की अत्यधिक शक्ति ने उसके हृदय में अति तीव्र भय भर दिया।
जब वह पहली बार वाई०एम०सी०ए० के तालाब पर गया तो अप्रिय स्मृतियाँ पुनर्जीवित हो उठीं। बचकाने भय उत्पन्न हो गये। किन्तु शीघ्र ही उसने विश्वास एकत्रित कर लिया। उसने अन्य लड़कों को तैरने के पंखों से पानी को धकेलते हुए देखा। उनकी नकल करके उसने भी सीखने का प्रयास किया। उसने विभिन्न दिनों पर 2-3 बार ऐसा किया। उसने जल में सहजता (आरामदायक) महसूस करना आरम्भ ही किया था कि यह दुर्घटना घटित हो गई।
जब वह तालाब पर गया, तो वहाँ कोई और नहीं था। अतः वह दूसरों की प्रतीक्षा करने के लिए तालाब के समीप (बगल में) बैठ गया। थोड़ी ही देर में, एक भारी-भरकम लड़का, एक मुक्केबाज़ आया। वह सम्भवतः 18 वर्ष का होगा तथा उसके हाथ-पैरों पर सुन्दर मांसपेशियाँ थीं। उसने लेखक को ‘पतलू’ कहकर पुकारा तथा पूछा कि वह पानी में डुबकी लगाने को कैसे पसन्द करेगा।
उस मुक्केबाज़ लड़के ने डगलस को उठाया तथा गहरे सिरे में फेंक दिया। वह बैठने की स्थिति में पानी से जा टकराया। उसने पानी निगल लिया और तुरन्त पेंदी (नीचे का तल) की ओर चला गया। वह भयभीत हो गया, किन्तु सोचने-विचारने की शक्ति नहीं गॅवाई। उसने एक योजना बनाई। जब उसके पैर पेंदी से टकरायेंगे, तो वह बड़ी छलांग लगायेगा। एक (कार्क) की डाट की भाँति वह तल पर आ जायेगा, इस पर सीधा लेटेगा तथा फिर पानी को धकेलता हुआ तालाब के सिरे तक पहुँच जायेगा।
वे नौ फुट नब्बे फुट से भी अधिक प्रतीत हुए। उसके पेंदी (तली) को छूने से पहले ही, उसके फेफड़े फटने को तैयार थे। जब उसके पैर पेंदी से टकराये तो उसने ऊपर की ओर तगड़ी छलाँग लगाई, किन्तु वह तुरन्त ऊपरी तल तक पहुँचने में असफल रहा। वह धीरे-धीरे ऊपर आया। उसकी आँखें तथा नाक पानी से बाहर आ गये, किन्तु मुँह नहीं आया। उसने पानी के तल पर अपनी टाँगें इधरउधर घुमाई । उसने पानी निगल लिया और उसका गला अवरुद्ध हो (रुक) गया। उसने अपनी टाँगें ऊपर लाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे भार की भाँति लटकी रहीं। वह फिर से तालाब की पेंदी की ओर चला गया।
वह पानी के नीचे चीख रहा था क्योंकि भय ने उसे जकड़ लिया था। वह पानी के नीचे शक्तिहीन-सा (पक्षाघात या लकवे से ग्रसित) हो गया था, किन्तु उसके धड़कते हृदय तथा मस्तिष्क ने उसे बताया कि वह अभी भी जीवित था। जब वह पेंदी से टकराया, तो वह अपनी पूरी शक्ति से ऊपर की ओर उछला। इस उछाल से भी कोई अन्तर नहीं आया। पानी अब भी उसके चारों ओर था। उसके हाथ-पैर हिलते ही नहीं थे। वह भय से काँपने लगा। उसने सहायता के लिए पुकारने का प्रयास किया, माँ को पुकारने का, किन्तु कुछ नहीं हुआ। फिर वह ऊपर उठा। उसकी आँखें तथा नाक लगभग पानी से ऊपर थे। उसने साँस लेने की कोशिश की किन्तु उसे पानी मिला। वह तीसरी बार नीचे जाने लगा।
फिर सभी प्रयास समाप्त हो गये तथा वह शान्त हो गया। एक कालिमा उसके मस्तिष्क पर छा गई तथा उसने भय को पोंछकर बाहर निकाल दिया। अब अचानक होने वाला भय नहीं था। वह उनींदा महसूस करने लगा तथा सोना चाहता था। उसने सभी प्रयास छोड़ दिये। वह सब कुछ भूल गया। जब उसकी चेतना वापस लौटी, तो उसने स्वयं को उल्टियाँ करते हुए पेट के बल तालाब के समीप लेटे हुए पाया। जिस लड़के ने उसे पानी के अन्दर फेंका था उसने कहा कि वह तो केवल मज़ाक कर रहा था। किसी अन्य ने कहा कि लड़का तो लगभग मर ही गया था। फिर वे उसे लॉकर वाले कमरे में (वस्त्र बदलने को) ले गये।
कई घंटे उपरान्त वह पैदल चलकर घर गया। वह दुर्बल (कमज़ोर) था तथा काँप रहा था। जब वह बिस्तर पर लेटा तो हिलने तथा चीखने लगा। उस रात वह भोजन नहीं कर सका। कई दिनों तक उसके हृदय में बार-बार भय मँडराता रहा। वह तालाब पर फिर कभी वापस नहीं गया। वह जल से भयभीत हो गया तथा जहाँ तक सम्भव हो इससे बचता था।
कुछ वर्ष उपरान्त उसे जल-प्रपातों के पानी के विषय में ज्ञात हुआ। वह उनमें घुसना चाहता था। जब कभी वह ऐसा करता तो वही भय जिसने उसे तालाब में जकड़ लिया था, पुन: लौट आता। उसकी टाँगें शक्तिहीन हो जाती थीं। एक ठंडा भय उसके हृदय को कसकर पकड़ लेता था। समय बीतते गए लेकिन यह कमी उसके साथ बनी रही। वह जहाँ कहीं जाता, बार-बार आने वाला पानी का भय उसका पीछा करता। इसने उसकी मछली पकड़ने की यात्राओं को बर्बाद कर दिया। इसने उसे डोंगीचालन, नौकायन तथा तैराकी से प्राप्त होने वाली प्रसन्नता से वंचित कर दिया।
अपने भय पर काबू पाने के लिए उसने उस प्रत्येक ढंग का प्रयोग किया जो वह जानता था। अन्त में, उसने एक प्रशिक्षक (सिखाने वाले गुरु) की सेवाएँ लेने और तैरना सीखने का निर्णय लिया। वह एक तालाब पर गया तथा सप्ताह में पाँच दिन, प्रतिदिन एक घंटा, अभ्यास करता। प्रशिक्षक ने उसके गिर्द (चारों ओर) एक पेटी लगाई। पेटी से जुड़ी हुई एक रस्सी च से होकर सिर के ऊपर बँधे तार से होकर जाती थी। वह रस्सी के सिरे को पकड़ लेता था। कई सप्ताह तक इसी तरह चलता रहा। तालाब में प्रत्येक बार भ्रमण के समय थोड़ा-सा भय उसे जकड़ लेता। प्रत्येक बार जब प्रशिक्षक रस्सी पर अपनी पकड़ ढीली करता तथा लेखक पानी के नीचे जाता, तो उसके पुराने भय का कुछ अंश लौट आता और उसकी टाँगें सुन्न हो जातीं।
यह तनाव हल्का (ढीला) होते-होते तीन महीने बीत गये। फिर प्रशिक्षक ने उसे पानी के अंदर चेहरा रखकर सांस छोड़ना (बाहर निकालना) एवं नाक ऊपर को उठाना एवं सांस लेना (भीतर खींचना) सिखाया। उसने यह अभ्यास सैकडों बार दोहराया। उसका सिर इस तरह पानी के अन्दर जाने से उसका कुछ पुराना भय अत्यन्त धीरे-धीरे समाप्त होता गया।
फिर प्रशिक्षक ने उसे तालाब की तरफ के पास से पकड़ा तथा उससे टाँगों से ठोकरें लगवाईं। उसने ऐसा कई सप्ताह तक किया। धीरे-धीरे उसकी टाँगें आराम महसूस करने लगीं। इस प्रकार टुकड़े-टुकड़े में उसने उसे एक तैराक बनाया। जब उसने उसे प्रत्येक भाग में पूर्णतया निपुण कर दिया तो उन्हें साथ रखकर एक समन्वित पूर्ण रूप निर्मित किया। उसने अक्तूबर में अभ्यास करना आरम्भ किया था तथा अप्रैल में प्रशिक्षक ने उसे बताया कि वह तैर सकता था। उसने लेखक को गोता मारने तथा पूरे तालाब की लम्बाई में तैरने को कहा। उसने रेंगने वाले प्रहार से आरम्भ किया।
जब वह तालाब में अकेला तैरता तो पुराने भय के छोटे-छोटे अवशेष लौट आते किन्तु अब वह अपने भय को दबा सकता था। ऐसा जुलाई तक चलता रहा। वह अब भी सन्तुष्ट नहीं था। अत: वह न्यू हैम्पशायर में लेक वेन्टवर्थ में गया। वहाँ उसने ट्रिग्स द्वीप में एक गोदी से गोता लगाया। वह झील के पार स्टाम्प एक्ट द्वीप तक दो मील तैरकर गया। वह रेंगने के प्रहार, छाती के प्रहार, पक्ष के प्रहार तथा पीठ के प्रहार से तैरा। भयं केवल एक ही बार लौटा। जब वह झील के मध्य में था, तो उसने अपना सिर पानी के नीचे किया तथा पेंदीविहीन जल के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा। उसने भय से पूछा कि वह इसका क्या कर सकता था तथा यह दूर भाग गया।
कुछ सन्देह अब भी शेष थे। अतः वह टाइटन नदी के ऊपर को कॉनरेड चरागाह कानरैड पद-मार्ग से ऊपर मीड हिमनद तक गया। उसने वार्म लेक के पास ऊँची चरागाहों में शिविर लगाया। अगली प्रातः उसने झील में गोता लगाया तथा दूसरे तट तक तथा पुनः वापस तैरकर गया। वह प्रसन्नता से चिल्लाया, तथा गिल्बर्ट चोटी से प्रतिध्वनि टकराकर लौट आई। उसने पानी से अपने भय पर विजय प्राप्त कर ली थी।
इसे अनुभव का उसके लिए एक गहरा अर्थ था। लोग जिन्होंने कठोर भय को जाना है तथा इसे विजित किया है, केवल वे ही इसको समझ सकते हैं। मृत्यु में शान्ति है। मृत्यु के भय में ही अत्यधिक भय है। रूजवेल्ट को यह ज्ञात था। उसने कहा था, “जिससे हमें डरना है वह तो डर स्वयं ही है।” डगलस ने मरने की अनुभूति तथा जो भय वह उत्पन्न कर सकता था, इन दोनों का ही अनुभव किया था। जीवित रहने की इच्छा किसी प्रकार से तीव्रता में विकसित हो गई।
अन्त में डगलस ने स्वतन्त्र (मुक्त) महसूस किया। वह पर्वतों के पथ पर चलने के लिए तथा शिखरों (चोटियों) पर चढ़ने को एवं भय को अनदेखा करने के लिए स्वतन्त्र था।
Important Questions on Deep Water
What is the author’s attitude towards water at the beginning of the essay?
Answer: At the beginning of the essay, the author is afraid of water and has a negative attitude towards it.
How did the author’s relationship with water change?
Answer: The author’s relationship with the water changed when he started swimming in a lake with his friend. He gradually overcame his fear and began to enjoy the experience.
What does the author mean when he says, “The man who is swimming must not fear the water. Fear is death, fear is paralysis”?
Answer: The author means that fear can hold us back from experiencing life to the fullest. If we let our fears control us, we will not be able to fully participate in the world around us.
How does the author’s experience with water relate to other aspects of his life?
Answer: The author’s experience with water represents a larger theme of facing and overcoming one’s fears. This theme can be applied to other aspects of life, such as taking risks or facing challenges.
What does the author suggest is the key to overcoming fear?
Answer: According to the author, the key to overcoming fear is to face it head-on and gradually expose oneself to the object of fear. This can help desensitize the person and make them more comfortable in the face of fear.